सौंदर्य की उपासना - रामजी प्रसाद " भैरव " ललित निबन्ध
यदि आप मुझे लम्पट समझ लें तो मेरा क्या कसूर है । हाँ , मैं यह स्वीकारता हूँ , आप मुझे प्रेम पुजारी कह सकते हैं । मेरे लिए यह आपत्ति जनक नहीं होगा । मुझे अकबर इलाहाबादी का एक शेर याद आ रहा है -
साहित्य

रामजी प्रसाद "भैरव"
7:23 PM, September 5, 2025
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यदि आप मुझे लम्पट समझ लें तो मेरा क्या कसूर है । हाँ , मैं यह स्वीकारता हूँ , आप मुझे प्रेम पुजारी कह सकते हैं । मेरे लिए यह आपत्ति जनक नहीं होगा । मुझे अकबर इलाहाबादी का एक शेर याद आ रहा है -
" बे-पर्दा नज़र आईं कल जो चंद बीबियां , अकबर जमीं में हैरते कौमी से गड़ गया ।
पूछा जो मैंने आप का पर्दा वो क्या हुआ , कहने लगे अक्ल पे मर्दों के पड़ गया ।"
बल्कि आप अकबर साहब के शब्दों में कह सकते हैं कि मेरी अक्ल पर पर्दा पड़ा है , जो मैं प्रेम की बात कर रहा हूँ । प्रेम की बात करना कोई गुनाह तो नहीं । मैं तो यही मानता हूँ । आप जो माने । हो सकता है आप को मेरी हरकत उम्र के हिसाब से ठीक न लगे । आप मुझे जलती हुई आंखों से घूर घूर कर देखें । वैसे मैं अपनी सफाई में कुछ कहना नहीं चाहता । लेकिन प्रेम के प्रति आप की अवधारणा ठीक करने के लिए , मुझे कहना पड़ रहा है । प्रेम संसार की सबसे अनमोल चीज है । क्या आप दावे के साथ यह कह सकते हैं । मनुष्य को प्रेम की समझ ठीक ठीक कब विकसित हुई होगी । शायद नहीं । मुझे लगता है मनुष्य को रिश्ते की समझ विकसित होने से पूर्व ही प्रेम की समझ हो गयी थी । प्रेम समाज के निर्माण से पहले की वस्तु है । स्त्री पुरुष के सम्बन्धों को विकसित करने के लिए विवाह जैसी संस्था का निर्माण हुआ । लेकिन स्त्री पुरुष के बीच केवल पति पत्नी का ही रिश्ता नहीं होता , प्रेमी प्रेमिका का भी होता है ।
आज कल जो रूप प्रेम का देखने को मिल रहा है , वह प्रेम नहीं वासना है । वासना शरीर की भूख पर निर्भर करती इसे प्रेम नहीं कह सकते । एक शब्द यौवनाकर्षण है , इसे मैं इतना खराब नहीं मानता । संसार के समस्त साहित्य के निर्माण में इसकी बड़ी भूमिका है । किसी को किसी आँख अच्छी लगती है , किसी को किसी के होंठ , तो किसी को किसी का मुख , किसी को किसी की ठुड्डी पसन्द है। किसी को किसी गाल पर पड़ने वाले डिम्पल आकर्षित करते हैं । कोई तिल पर फिदा है तो कोई रतनारे नैनों पर । कोई कोयल सी बोली पर , तो कोई प्रेमिका के घने लम्बे केशों पर , कोई वक्ष पर फिदा है तो कोई नितम्ब पर । सबके अलग अलग आकर्षण हैं । किसी को हंसिनी सी चाल पसन्द है । तो कोई मोरनी सी चाल पर ।कोई गजगामिनी है । कोई मीनाक्षी है , कोई मृगनयनी है । कहाँ तक बखान करूँ । मनुष्य के आकर्षण का कोई केंद्र विंदु बन सकता है । इसे वासना की तुच्छ नजरों से नहीं देखा जा सकता । उर्दू साहित्य में एक शब्द आता है सरोपा , जिसका अर्थ होता है सिर से पाँव तक । सुंदरता को कहीं ढूंढा जा सकता है । बस देखने वाले कि नज़र होनी चाहिए । नज़र भी ऐसी जिसे हिंदी में शुभ दृष्टि कहते है । कुदृष्टि नहीं । एक बात कहना और आवश्यक लगता है , सुंदरता को आप परखते कैसे हैं । कोई पैमाना है आप के पास । शायद नहीं । एक बात मैं मानता हूँ कि सुंदरता मापने के कोई पैमाना नहीं होता । जैसी आप की दृष्टि होगी , वैसा ही आप देखेंगे । एक मजेदार बात सुनाता हूँ । पता नहीं कहीं लिखा पढ़ी में है या किसी विद्वान ने मन गढ़ंत बात ही कही है । जो भी हो पर है मजेदार । वैसे प्रेम में तो ऐसा नोंक झोंक होता ही रहता है । किसी शायर ने कहा है -
" है इश्क़ वो बेज़ायक शर्बत न तुर्शी हो जिसमें शामिल ।
विसाले यार में भी चाहिए तकरार थोड़ी सी ।।
बिना नोंक झोंक के प्रेम स्वाद हीन शर्बत की तरह होता है ।मिलन की राह में , थोड़ी तकरार भी जरूरी है । खैर , आते हैं उस बात पर , एक बार राधा और कृष्ण में अपने अपने रंग को लेकर गर्वोक्ति की बात होने लगी । राधा ने कृष्ण को कुछ ज्यादा ही चिढ़ा दिया । राधा का कहना था मैं तुमसे गोरी और सुंदर हूँ । तुम सांवले अर्थात काले हो । कृष्ण को बात चुभ गयी । उन्होंने कहा -" अगर तुम्हारा थोड़ा गोरा रंग मुझ पर पड़ जाय तो मुझे लोग कुष्ट रोगी कहेंगे और यदि मेरा रंग अर्थात काला तुम पर पड़ जाये तो , सुंदरता बढ़ाने वाला तिल कहेंगे ।" है न दिलचस्प बात ।
एक नैसर्गिक सुंदरता होती है , दूसरी कृतिम सुंदरता । जो नैसर्गिक होता है उसे श्रृंगार की बहुत आवश्यकता नहीं होती । हमारे यहाँ गाँव में ऐसे लोगों के बारे में बोला जाता है कि उनके चेहरे का पानी अच्छा है । या फिर यह कि भगवान ने फुर्सत में रच रच के बनाया है । विद्वानों ने इतनी उपमाएं दी है कि कोई गिनती भूल जाय । चेहरे को चाँद की उपमा दी गयी । आँखों को कटारी , भौंहों को कमान की । नाक को कीर की , दाँतों को दाड़िम पंक्तियां , होठों को सन्तरे की फाँकी , और केशों को बल खाती हुई नागिन आदि ।
यह तो हुई नैसर्गिक सुंदरता , अब कृतिम सुंदरता को समझते है । मनुष्य जो नहीं है , वह दिखने का प्रयत्न करें , तो उसे आप कृतिम सुंदरता कह सकते है । मनुष्य की यह प्रवृत्ति आज की नहीं है । सदियों से है और आगे भी रहेगी । सुंदर लोगों की तुलना में , कुरूप लोगों या कम सुंदर लोगों में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से पायी जाती है । वह कृतिम संसाधनों के बल पर सुंदर लोगों के समकक्ष आ खड़े होते हैं । इसमें भी कोई हर्ज नहीं । सबको सुंदर दिखने का अधिकार है । इसे मैं बुरा नहीं मानता । साहित्य भरा पड़ा है ऐसे उदाहरणों से ।
अब देखिए न हिंदी वालों ने जो किया सो किया । उर्दू अदब के लोगों कम गज़ब नहीं ढाया । किसी शायर की ये पँक्तियाँ देखिए -"
अब मैं समझा तेरे रुखसार पर तिल का मतलब ।
दौलत ए हुस्न पर दरबान बिठा रक्खा है ।।
यानि जो तुम्हारे चेहरे की सुंदरता है । वह किसी खजाने से कम नहीं , जिसकी रक्षा के लिए तुमने दरबान यानि सिपाही नियुक्त कर रखा है ।
सौंदर्य के उपासक कम हैं , वासना के अधिक । देह के उपासकों ने समाज की आबो हवा बिगाड़ दी । लोग स्त्री को भोग्या समझने लगे । स्त्री कोई वस्तु नहीं है । वह भी ईश्वर की बनाई हुई सुंदर कृति है । वह केवल भोग के लिए नहीं बनी है । स्त्री के ऊपर सृष्टि के निर्माण की जिम्मेदारी है । इसलिए वह आराध्य है । वन्दनीय है । पूज्यनीय है । जितने रूप में स्त्री जीती है , पुरुष उतने रूपों में नहीं जी सकता । हाँ , यह सच है दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं । दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए । प्रेम पूर्ण दृष्टि के साथ , एक दूसरे का हाथ थामे संसार सागर में तैरते आगे बढ़ जाएं । राधा कृष्ण की विवाहिता नहीं थी , लेकिन कितना पवित्र प्रेम था । संसार पूजता है दोनों के प्रेम को । मीरा को ही ले लीजिए है कोई दूसरा उदाहरण आप के पास है प्रेम का । नहीं है , और न होगा ।
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मीरा ने कहा -" सूली ऊपर सेज पिया की , मिलना केहि विधि होय ।।"
जिस प्रेम को सूली पर चढ़कर पाना हो , उसको भला हर कोई कैसे पा सकता है । यह सम्भव नहीं है । मीरा बनना आसान नहीं है । एक सूफ़ी सन्त हुए अमीर खुसरो प्रेम के अद्भुत गायक , नस नस में प्रेम पिरो देने वाले । कोई सुने उनको , पढ़े उनको तब पता चले , प्रेम क्या है । प्रेम कोई सतही वस्तु नहीं है । प्रेम ईश्वर की इबादत है , पूजा है । साधना है ।
अमीर खुसरो को देखिए क्या कहते हैं -
" आपन छबि बनाइके , जो मैं पी के पास गई ।
जब छबि देखी पीहू की , अपनी सुधि भूलि गई ।
छाप तिलक सब छीनी रे , मोसे नैना मिलाइके ।
बिना नैना मिलाये कुछ होने वाला नहीं , प्रेम में नैना मिलाना पड़ता है । नैना मिलाकर दिल में उतरना पड़ता है । दिल में उतरकर ठहरना पड़ता है । दिल में ठहरना आसान बात नहीं है । अपना सुकून खोना है । लेकिन किसके लिए जो दिल में बसा है उसके लिये । सूफियों में प्रेम के चार सिद्धान्त महत्वपूर्ण हैं । शरीयत , तरीक़त , हक़ीक़त , मारिफ़त । शरीयत का अर्थ धर्म के अनुसार , अधर्म पूर्वक नहीं । तरीक़त का अर्थ है , सैद्धान्तिक रूप से , नियम पूर्वक , तीसरा है हक़ीक़त , हक़ीक़त का अर्थ है सच्चाई । सच को स्वीकार करना । उदाहरण के लिए लैला को लीजिए , वह काली थी , लेकिन मजनूं ने दीवानगी की सारी हदें पार कर दी । और चौथा है मारिफ़त । मारिफ़त का अर्थ है माध्यम । यहाँ प्रेम का माध्यम कौन है । गुरु । गुरु वह है जो पथ दिखाता है । प्रेमिका यानि ईश्वर को पाने के अनेक पथ हैं । सही पथ की पहचान गुरु कराता है ।
प्रेम करने वाला दुनियादार नहीं होता और दुनियादार प्रेमी नहीं हो सकता । दोनों में कितना विरोधाभास है । जो दुनियादार है वह प्रेमी होने का ढोंग कर सकता है , परन्तु प्रेमी ऐसा नहीं कर सकता । यह उसके लिए सम्भव ही नहीं है , क्यों कि वह सच्चा प्रेमी है । सच्चा इसलिए कि उसके हृदय में कोई विराजता है । वहाँ कूड़ा करकट नहीं भरा है । जिसके हृदय में कूड़ा करकट भरा होगा , वह प्रेम नहीं कर सकता । प्रेम करने का स्वांग कर सकता है । कबीर कितना सटीक बात कहते हैं । यह बात कबीर के अलावा कोई दूसरा कर ही नहीं सकता । कबीर के पास माद्दा है । किसी बात को डंके की चोट पर कहने का माद्दा सबके पास नहीं होता । पर कबीर तो कबीर हैं । जो कहते हैं आयां कहते हैं । डंके की चोट पर कहते हैं । सबके सामने कहते हैं । सीना तानकर कहते हैं ।
" हमन है इश्क मस्ताना , हमन को होशियारी क्या ।
रहें आजाद या जग में , हमन को दुनियाँ से यारी क्या ।।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो चतुराई से प्रेम करना चाहते हैं । कितने भरमित हैं वो । भला ऐसा भी होता है । चतुराई से व्यापार किया जा सकता है , पर प्रेम नहीं । चतुराई से प्रेम करने पर , सब विनष्ट हो जाता है । क्यों कि प्रेम का मार्ग अत्यंत सीधा और सरल है । उस पर टेढ़े मेढ़े चलने वाले , छलिया लोग नहीं चल पाते । यह पथ उनके लिए बना ही नही है । सौंदर्य के एक अन्य उपासक कवि घनानन्द कितनी सही बात करते हैं ।
" अति सुधो सनेह को मारग है ,जहाँ नेकु सयानप बांक नहीं ।
तहाँ सांच चले तजि आपुनपो , झिझके कपटी जे निसाक नहीं।"
प्रेम का मार्ग अत्यंत सीधा है । सरल है । वहाँ पर सयानापन यानि चतुराई नहीं चलती । टेढ़े मेढ़े चलने वाला अर्थात कुमार्गी इस पथ पर चल ही नहीं सकता । कोई सच्चा प्रेमी ही इस पथ पर चल सकता है । कपटी मनुष्य निशंक होकर इस पथ पर चल ही नहीं सकते । वे झिझकते हैं कहीं पोल न खुल जाय । यदि कोई प्रेम में स्वार्थ और कपट रखता है तो यह पथ उनके लिए नहीं है । जो सौंदर्य के उपासक हैं , उनके लिए यह पथ आसान है । उन्हें लक्ष्य तक पहुँचने से कोई रोक नहीं सकता । कभी नहीं रोक सकता ।