ट्रंप की टैरिफ-हठधर्मिता के बीच तीन दिग्गज एक मंच पर
रूस-भारत-चीन (RIC) साथ मिलकर नई वैश्विक व्यवस्था की इबारत लिख सकते हैं। अमेरिकी टैरिफ नीति के कारण व्यापारिक मोर्चे पर मची उथल-पुथल के बीच इस तिकड़ी का साथ आना पूरी तस्वीर बदल सकता है। चीन में एससीओ समिट के बाद रूस ने आरआईसी की सहयोग बढ़ाने की पहल की है। भारत की नजर में बहुध्रुवीय विश्व को देखते हुए यह अधिक स्वायत्तता का अवसर है।
देश-विदेश

5:27 AM, August 31, 2025
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अलास्का बैठक रूस-यूक्रेन जंग रोकने में भले ही सफल न हुई हो। लेकिन इसने एक बात तो साबित कर दी कि वैश्विक कूटनीति में रूस का दबदबा अब भी बरकरार है। अलास्का बैठक के बाद चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने नई दिल्ली की यात्रा की। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ रणनीतिक चर्चाएं भी कीं। अब तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी के साथ एशिया के तीन दिग्गज देश एक मंच पर होंगे।
भारत-चीन वैश्विक व्यापार अनिश्चितता के बढ़ते दौर में अपने संबंधों को पुनर्संतुलित करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। इसके बीच ही रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की तरफ से रूस-भारत-चीन (आरआईसी) के बीच सहयोग को पुनर्जीवित करने के आह्वान ने नए सिरे से बहस छेड़ दी है कि त्रिपक्षीय कूटनीति एशिया को स्थिर करने में कैसे मदद कर सकती है। खासकर ऐसे समय पर इस तिकड़ी का साथ आना काफी अहम माना जा रहा है जब अमेरिकी टैरिफ से व्यापारिक मोर्चे पर काफी उथल-पुथल मचा रखी है।विश्लेषकों का मानना है कि अलास्का बैठक इस मायने में अहम साबित हुई कि मास्को की निर्णायक भूमिका को प्रतिबंधों या कूटनीतिक दबाव से मिटाया नहीं जा सकता। बहरहाल, भारत के लिए ये बैठक इसलिए खास नहीं थी कि रूस की वैश्विक मंच पर दमदार वापसी हुई बल्कि उसके लिए व्यापक बहुध्रुवीय परिदृश्य में इसके संकेत अधिक मायने रखते हैं। वैश्विक वार्ताओं में अपनी भूमिका के प्रति अधिक आश्वस्त रूस एशिया में अपनी भागीदारी का विस्तार करना चाहता है और इससे भारत के लिए क्षेत्रीय कूटनीति को सुदृढ़ करने का अवसर उत्पन्न होता है। आरआईसी पर लावरोव का आह्वान इसी दिशा में एक पहल है।आरआईसी सहयोग से एशियाई शक्तियों में बढ़ेगा समन्वयभारत, रूस और चीन के साथ आने से एक ऐसा मंच स्थापित होगा जिससे एशियाई शक्तियों को चुनिंदा मुद्दों पर समन्वय का मौका मिल सकेगा। अमेरिकी टैरिफ के दबाव के बीच चीन के लिए आरआईसी द्विपक्षीय तनावों की सीमाओं से परे समन्वय का एक मंच प्रदान करेगा। मॉस्को के लिहाज से इससे वैश्विक बदलावों को संतुलित करने के लिए एशियाई साझेदारी महत्वपूर्ण बन जाएगी। भारत के लिए यह मंच किसी एक गुट के प्रति प्रतिबद्धता के बिना अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए कूटनीतिक माध्यम बन सकता है।
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