मारिया कोरिना माचाडो को मिला नोबेल शांति पुरस्कार 2025

मारिया कोरिना माचाडो की कहानी यह सिखाती है कि सच्ची राजनीति सत्ता पाने का नहीं, बल्कि जनता की गरिमा बचाने का संघर्ष है। उन्होंने बार-बार यह साबित किया कि औरत होना कोई कमजोरी नहीं, बल्कि वह ताकत है जो अन्याय के सामने दीवार बनकर खड़ी होती है।

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मारिया कोरिना माचाडो


5:21 PM, Oct 10, 2025

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फीचर डेस्क

जनपद न्यूज़ टाइम्स



जब दुनिया के कई हिस्सों में लोकतंत्र की आवाज़ें दबाई जा रही हैं, ऐसे में नॉर्वे की नोबेल समिति ने उस आवाज़ को सम्मान दिया है, जो तानाशाही के अंधेरे में उम्मीद की मशाल बनकर जलती रही। 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो को मिला है, उस निर्भीक महिला को, जिसने अपने देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए न डर देखा, न थकान।
नोबेल समिति ने घोषणा करते हुए कहा कि यह पुरस्कार उन्हें “वेनेज़ुएला के नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए उनके निरंतर संघर्ष और शांतिपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन के लिए उनके नेतृत्व” के सम्मान में दिया गया है। समिति ने उन्हें “साहस और नागरिक जिम्मेदारी का प्रतीक” बताया।
मारिया का जन्म काराकास में हुआ। उन्होंने इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और निजी क्षेत्र में काम किया, लेकिन उनका मन समाज सेवा में रम गया। युवावस्था में ही उन्होंने नागरिक अधिकारों और पारदर्शिता के लिए काम करने वाले संगठनों से जुड़ाव शुरू किया। 2002 में उन्होंने ‘सुमाते’ नामक संगठन की सह-संस्थापक के रूप में पहचान बनाई, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को बढ़ावा देता है।
2010 में उन्होंने नेशनल असेंबली का चुनाव भारी समर्थन से जीता और विपक्ष की तेज़तर्रार आवाज़ बनीं। लेकिन 2014 में सरकार ने उन्हें संसद से बाहर कर दिया और उनके राजनीतिक अधिकार सीमित कर दिए। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी।
देश आर्थिक पतन, भ्रष्टाचार और दमन की नीतियों से जूझ रहा था। माचाडो ने इसी दौर में अपनी पार्टी ‘वेंटे वेनेज़ुएला’ की बागडोर संभाली और लोकतंत्र की बहाली का नारा बुलंद किया। 2017 में उन्होंने ‘सोय वेनेज़ुएला’ नामक गठबंधन का गठन किया, जिसने लोकतंत्र समर्थक ताकतों को एक मंच पर लाने का काम किया। उनका संदेश था — “हम हिंसा से नहीं, साहस और सत्य से जीतेंगे।”
सरकार ने उन्हें चुनाव लड़ने से रोका, कई बार पाबंदियाँ लगाईं, और उन्हें छिपकर काम करना पड़ा। लेकिन हर बार वह और मजबूत होकर लौटीं।
नोबेल समिति ने कहा, “मारिया कोरिना माचाडो ने यह साबित किया है कि लोकतंत्र केवल सत्ता की प्रणाली नहीं, बल्कि नागरिक साहस और नैतिक दृढ़ता की परख भी है।” उनकी पहचान अब वेनेज़ुएला तक सीमित नहीं रही वह दक्षिण अमेरिकी लोकतंत्र की नई आवाज़ बन चुकी हैं।
उनके संघर्ष में विवाद भी रहे कुछ आलोचकों ने उनके विदेशी समर्थन पर सवाल उठाए, लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि अगर वैश्विक सहयोग से लोकतंत्र की लौ जल सकती है, तो यह निंदनीय नहीं, बल्कि आवश्यक है।
मारिया कोरिना माचाडो की कहानी यह सिखाती है कि सच्ची राजनीति सत्ता पाने का नहीं, बल्कि जनता की गरिमा बचाने का संघर्ष है। उन्होंने बार-बार यह साबित किया कि औरत होना कोई कमजोरी नहीं, बल्कि वह ताकत है जो अन्याय के सामने दीवार बनकर खड़ी होती है।
आज जब उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, तो यह केवल उनके नाम का नहीं, बल्कि हर उस नागरिक का सम्मान है जो लोकतंत्र की रक्षा के लिए खड़ा है चाहे वह किसी भी देश, धर्म या भाषा का क्यों न हो।
नोबेल समिति का यह फैसला एक संदेश है कि शांति केवल बंदूकें खामोश करने से नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की आवाज़ को बुलंद रखने से आती है। मारिया कोरिना माचाडो ने यह आवाज़ बुलंद की है अपने लोगों के लिए, अपने देश के लिए, और उस दुनिया के लिए जहाँ लोकतंत्र अब भी उम्मीद की सबसे पवित्र लौ है।


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