राहत इंदौरी के शेर

मुझे पूरा यकीं है कि इस तस्वीर को देख कर आप जरूर चोंके होंगे। जी हाँ। यह दोनों महान शायर और शायरा एक समय में पति पत्नी थे। 1993 या 98 में इनका तलाक हो गया। समय बीता और यह दोनों को एक साथ किसी मुशायरे में शिरकत करने का मौका मिला। दोनों ने जो शेर पढ़े उनसे इनकी नाराजगी, दर्द और छिपी हुईं मुहब्बत का बाखूबी इसहार होता है और यह बहुत मार्मिक है

शेर

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11:38 PM, Sep 2, 2025

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पेश है इसी मुशायरे के कुछ शेर जो दोनों ने एक दूसरे को इशारा करते हुए कहे। 

पहले अंजुम रहबर जी

मोहबतों का सलीका सिखा दिया मैंने

तेरे बगैर भी जी कर दिखा दिया मैंने

बिछड़ना मिलना तो किस्मत की बात है लेकिन

दुआएं दे तुझे शायर बना दिया मैंने

जहाँ सजा के मैं रखती थी तेरी तस्वीरें

अब उस मकान में ताला लगा दिया मैंने

जो तेरी याद दिलाता था चहचाहाता था

मुंडेर से वो परिंदा उड़ा दिया मैंने

यह मेरे शेर नहीं मेरे जख्म हैँ 'अंजुम '

ग़ज़ल के नाम पे क्या क्या सुना दिया मैंने

ये अभी और हसीं और सुहाना होगा

न हुआ है न कभी प्यार पुराना होगा

है ताल्लुक तो अना छोड़नी होगी इक दिन

तुमसे रूठी हूँ तुझे आ के मनाना होगा

है कोई और नज़र में तो इजाजत है तुझे

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शर्त इतनी है मुझे शादी में बुलाना होगा

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राहत इंदौरी साहब का जवाब

बचा के रक्खी थी कुछ ज़माने से

हवा चिराग उड़ा ले गईं सरहाने से

हिदायतें न करो नसीहतें न करो इश्क करने वालों को

यह आग और भड़क जायगी भूझाने से

हुआ है सामना फिर जिंदगी का अर्से बाद

बड़े दिनों में पुरानी मिली पुराने से

हरेक इम्तिहाँ से गुजर थोड़ी जायेंगे

तुझसे नहीं मिलेंगे तो मर थोड़ी जायेंगे

उठने को उठ गए हैँ तेरी बज्म से

अब इतनी रात हो गईं है घर थोड़ी जायेंगे

अब जो मिला है उसका निभाएंगे साथ हम

तेरी तरह से मुकर थोड़ी जाएंगे

"अंजुम रहबर *राहत इंदौरी "

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