धान की फसल पर कीट व रोगों का बढ़ा प्रकोप, कृषि विभाग ने जारी की सलाह
जिला कृषि रक्षा अधिकारी स्नेह प्रभा ने जानकारी दी कि वर्तमान समय में धान की फसल वानस्पतिक अवस्था में है और किसानों को कीट व रोगों से सतर्क रहने की आवश्यकता है। विकासखंडों से प्राप्त साप्ताहिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में धान की फसल पर जड़ की सूड़ी (रूट वीविल), तना बेधक कीट, जीवाणु झुलसा रोग तथा खैरा रोग की समस्या सामने आई है।
चंदौली

8:35 PM, September 6, 2025
चंदौली,। जिला कृषि रक्षा अधिकारी स्नेह प्रभा ने जानकारी दी कि वर्तमान समय में धान की फसल वानस्पतिक अवस्था में है और किसानों को कीट व रोगों से सतर्क रहने की आवश्यकता है। विकासखंडों से प्राप्त साप्ताहिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में धान की फसल पर जड़ की सूड़ी (रूट वीविल), तना बेधक कीट, जीवाणु झुलसा रोग तथा खैरा रोग की समस्या सामने आई है।
🔹 जड़ की सूड़ी (रूट वीविल)
यह कीट अधिक जलभराव वाले क्षेत्रों में पाया जाता है।
जड़ों और तनों का रस चूसकर पौधे को सुखा देता है, जिससे पौधे मृतप्राय हो जाते हैं।
उपचार/प्रबंधन:
1. खेत से पानी का निकास करें।
2. कर्बोफ्यूरान 3G (18-20 किग्रा/हेक्टेयर) या क्लोरोपायरीफास 20 EC (2,000–2,500 मि.ली./हेक्टेयर) या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4% (17-18 किग्रा/हेक्टेयर) का प्रयोग करें।
🔹 तना बेधक कीट
इसकी सूड़ियाँ हल्के पीले शरीर और नारंगी पीले सिर वाली होती हैं।
प्रकोप से वानस्पतिक अवस्था में मृत गोभ तथा बाल आने पर सफेद बाली बनती है।
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उपचार/प्रबंधन:
यदि 5% मृत गोभ या एक अंडे का झुंड वानस्पतिक अवस्था में दिखाई दे तो कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4% (17–18 किग्रा/हेक्टेयर) का प्रयोग करें।
विकल्प के रूप में 1,500 मि.ली. नीम आयल को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
🔹 जीवाणु झुलसा रोग
पत्तियों पर लहरदार पीले-सफेद धब्बे, सिरे से सूखना, मुड़ना और बीच की नस सुरक्षित रहना इसके लक्षण हैं।
सुबह घावों पर दूधिया/अपारदर्शी ओस जैसी बूंदें दिखती हैं।
उपचार/प्रबंधन:
1. बीजोपचार: स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन (4 ग्राम प्रति 25 किग्रा बीज) से उपचार करने पर 70% तक बचाव संभव।
2. स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन (30 ग्राम) + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (1.25 किग्रा/हेक्टेयर) का छिड़काव करें।
3. गर्भावस्था अवस्था में म्यूरेट ऑफ पोटाश (6 ग्राम/ली.), जिंक (4 ग्राम/ली.), एलेमेंटल सल्फर (6 ग्राम/ली.) का घोल छिड़कें। आवश्यकता पड़ने पर 7 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें।