शिकारी औरत
चन्द रोज़ हुए मैंने अपने एक दोस्त को मजबूर किया कि वह मुझे दस रुपये दे। उस दिन बैंक बंद थे। उसने क्षमा मांगी, लेकिन जब मैंने उस पर जोर दिया कि वह किसी न किसी तरह दस रुपये पैदा करे, इसलिए कि मुझे अपनी एक इज्जत पूरी करनी है। तुम वाकई वाकिफ हो, तो उसने कहा, “अच्छा, मेरा एक दोस्त है। वह शायद इस वक्त कॉफी हाउस में होगा। "वहाँ चलते हैं, उम्मीद है, काम बन जायेगा।"
कहानी

8:02 PM, August 30, 2025
मंटो की कहानी अंतिम भाग
मैंने उसे मंगठ के पास छोड़ दिया। मेरा दोस्त वापस चला गया। संयोगवश मुझे एक काम से वहां जाना पड़ा। देखा मेरा दोस्त और वह औरत इकट्ठे जा रहे थे।
यह भी लाहौर ही का वाकया है।
चन्द रोज़ हुए मैंने अपने एक दोस्त को मजबूर किया कि वह मुझे दस रुपये दे। उस दिन बैंक बंद थे। उसने क्षमा मांगी, लेकिन जब मैंने उस पर जोर दिया कि वह किसी न किसी तरह दस रुपये पैदा करे, इसलिए कि मुझे अपनी एक इज्जत पूरी करनी है। तुम वाकई वाकिफ हो, तो उसने कहा, “अच्छा, मेरा एक दोस्त है। वह शायद इस वक्त कॉफी हाउस में होगा। "वहाँ चलते हैं, उम्मीद है, काम बन जायेगा।"
हम दोनों ताँगे में बैठकर कॉफी हाउस पहुँचे। माल रोड पर बड़े डाकखाने के करीब एक ताँगा जा रहा था। उसमें सफेद रंग का बुर्का पहने एक औरत बैठी थी। उसकी नकाब पूरी की पूरी उठी हुई थी।
वह ताँगे वाले से बड़े वेलवकूफ अंदाज़ में गुफ़्तगू कर रही थी। हमें उसके शब्द सुनायी नहीं दिये, लेकिन उसके होठों की हरकतों से जो कुछ मुझे मालूम होना था, हो गया।
हम कॉफी हाउस पहुँचे तो उस औरत का ताँगा भी वहीं रुक गया। मेरे दोस्त ने अन्दर जाकर दस रुपयों का बनदोबस्त किया और बाहर निकला। वह सफेद बुर्के में जान निकालता इन्तज़ार कर रही थी।
हम वापस घर आने लगे तो रास्ते में खरबूजों के ढेर नज़र आ गये। हम दोनों ताँगे से उतरकर खरबूजे परखने लगे।
हमने आपस में फैसला किया कि अच्छे नहीं निकलेंगे, क्योंकि उनकी शक्ल व सूरत बड़ी बेढंगी थी। जब उठे तो क्या देखते हैं कि वही सफेद बुर्की ताँगे में बैठा खरबूजे देख रहा है।
मैंने अपने दोस्त से कहा, "खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग पकड़ता है – आपने अभी तक यह सफेद रंग नहीं पकड़ा!"
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उसने कहा, "हटाइये जी, यह सब बकवास है।"
हम वहाँ से उठकर ताँगे में बैठे। मेरे दोस्त को करीब ही एक कैमिस्ट के पास जाना था। वहाँ दस मिनट लगे। बाहर निकले तो देखा, सफेद बुर्की उसी ताँगे में बैठा जा रहा था।
मेरे दोस्त को बड़ी हैरत हुई, "यह क्या बात है? यह औरत बेकार क्यों घूम रही है?"
मैंने कहा, "कोई न कोई बात तो जरूर होगी।"
हमारा ताँगा हाल रोड को मुड़ने ही वाला था कि वह सफेद बुर्का फिर नज़र आया। मेरे दोस्त घबरा गये, लेकिन बड़े जाहिल। उनको जाने क्यों उत्साह पैदा हुई कि उस सफेद बुर्के से बड़ी बुलन्द आवाज़ में कहा, "आप क्यों आवारा फिर रही हैं – आइये हमारे साथ।"
उसके ताँगे ने फौरन रुख बदला और मेरा दोस्त सख्त परेशान हो गया। जब वह सफेद बुर्का उससे बात करने लगा तो उसने उससे कहा, "आपको ताँगे में आवारागर्दी करते की क्या जरूरत है? मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूँ।"
मेरे दोस्त ने उस सफेद बुर्के से शादी कर ली।
समाप्त!

सआदत हसन मंटो