"गुरु और गुरुघण्टाल" रामजी प्रसाद " भैरव " ललित निबन्ध
मनुष्य को जीवन में अक्सर दो प्रजातियों से पाला बहुत बार पड़ता है । एक गुरु होते हैं , जिनकी मान प्रतीक्षा युगों युगों से चली आ रही है । यह पूर्णतया आध्यात्मिक व्यक्तित्व के होते हैं , इनका उद्देश्य अपने शिष्य में शास्त्रयोचित गुणों का विकास करना , और उन्हें समाजोपयोगी बनाना होता है । गुरु को भगवान के समकक्ष या उनसे ऊपर ही प्रतिष्ठा प्राप्त है । गुरु अपने अपने शिष्य का हर सम्भव भला सोचता है । वह उसे

रामजी प्रसाद "भैरव"
9:18 PM, Oct 8, 2025
रामजी प्रसाद "भैरव"
जनपद न्यूज़ टाइम्समनुष्य को जीवन में अक्सर दो प्रजातियों से पाला बहुत बार पड़ता है । एक गुरु होते हैं , जिनकी मान प्रतीक्षा युगों युगों से चली आ रही है । यह पूर्णतया आध्यात्मिक व्यक्तित्व के होते हैं , इनका उद्देश्य अपने शिष्य में शास्त्रयोचित गुणों का विकास करना , और उन्हें समाजोपयोगी बनाना होता है । गुरु को भगवान के समकक्ष या उनसे ऊपर ही प्रतिष्ठा प्राप्त है । गुरु अपने अपने शिष्य का हर सम्भव भला सोचता है । वह उसे समाज में आचार विचार से पुष्ट करता है । ज्ञान की जो थाती उसके पास होती है । वह शिष्य को अपने पुत्र की तरह सौंपता है । आचार्य , गुरु और शिक्षक एक ही पद के अलग अलग नामार्थ रखते हैं । इसमें एक विभेद गुरु को लेकर और है । वह है उपाध्याय । उपाध्याय वो होते हैं जो शिक्षा के समस्त छह भेद - शिक्षा , व्याकरण, कल्प , निरुक्त , छंद , ज्योतिष । को शुल्क लेकर पढ़ाते है । इन सबसे ऊपर प्राचार्य , प्रधानाचार्य , प्राध्यापक एक नामार्थ पद होता है । जो प्रसाशनिक कार्यों को देखता है ।
अगर देखा जाय तो गुरुओं की महत्ता से ग्रन्थ भरे पड़े हैं । जिसका उल्लेख यहाँ सम्भव नहीं है । जिस पर फिर कभी बात करेंगे ।
अच्छा अब मैं आगे बढ़ता हूँ , दूसरे नम्बर पर गुरु घण्टाल होते हैं । वैसे इस प्रवृत्ति के लोगों के लिए यह व्यंग्यार्थ शब्द है । ये थोड़े बेहया होते हैं । यदि इनके मुँह पर कोई कह दे " एकदम गुरु घण्टाल हैं क्या " । तो घोर बेइज्जती वाले शब्द पर भी हँस कर निकल जाते हैं । यह प्रायः हर प्रकार की संस्थाओं में पाए जाते हैं , लेकिन मैं यहाँ विशेष रूप से शिक्षा संस्थान की बात करूंगा । दूसरे प्रजाति के लोग किसी संस्थान में पहले यदा कदा पाए जाते थे , लेकिन धुरंडा की तरह इनकी संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है । एक प्रकार से शिक्षक या गुरु प्रजाति के लोग इनके चमक दमक के आगे फीके नजर आते हैं । ज्ञान से कोसों दूर झूठ के बल पर सदा अग्र पांक्ततेय दृष्टि गोचर होते हैं । शिक्षा संस्थानों में इनकी योग्यता का लोहा हर पढ़ा लिखा व्यक्ति मानता है । मानना भी चाहिए , समय की बलिहारी है । पहले बस सुनते थे कि गधे भी पंजीरी खाते हैं । अब देखता हूँ । रोज देखता हूँ । प्रायः देखता हूँ । अब मेरा दिन गधों को पंजीरी खाते देखते बीतता है । केवल बीतता ही नहीं , मुझे खुशी होती है । खुशी इस बात पर होती है । हाथ कंगन को आरसी क्या , पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या । खैर छोड़िए , बात गुरु घण्टलों की हो रही थी । ऐसे लोगों के होने से शिक्षा संस्थाएं निरन्तर उन्नति के पथ पर अग्रसर हैं । उनकी भीड़ बताती है कि उनकी बदौलत ही ये संस्थाएं आबाद है । मुझे खुशी होती है । आप हैं तो जग है । आप न होते तो जग नहीं होता । बातों बातों मैं थोड़ा आगे निकल आया । चलिए वापस चलते हैं । ऐसे गुरु घण्टलों की एक बात बड़ी कामन होती है । शिक्षा सन्थानों में रहकर , शिक्षा से इनका कोई दूर का नाता नहीं होता । इनका काम समय से आकर हाजिरी बनाना । पढ़ाने लिखाने और विद्यालयी जिम्मेदारियों से इतर यह हर कार्य में माहिर होते हैं । जैसे कौन गुरु प्रजाति का शिक्षक कब आ रहा है , कब जा रहा है । कितना पढ़ा रहा । कैसा कपड़ा पहना है । कल किसने क्या कहा , उसका लहजा क्या था । उस बात का क्या क्या अर्थ निकल सकता है । अगर अनर्थ भी निकले तो कोई हर्ज नहीं , उसे समाज में अन्य के सामने परोसने का काम बढ़िया से होना चाहिए बस । निंदा , आलोचना और चुगल खोरी समय काटने के इनके बेहतरीन साधन हैं । हां , समय समय पर गुरु प्रजाति में फूट डालने का काम भी , ईमानदारी पूर्वक करते हैं । प्रसंगवश मुझे एक कथा याद आ रही हैं । किसी गाँव में एक नककटा गया । गाँव वालों ने बड़ा मजाक उड़ाया । उसने तय किया कि इस गाँव को मैं ठीक कर के रहूंगा । वह गाँव से बाहर एक मड़ई में रहने लगा । गाँव वाले उस रास्ते से गुजरते तो उसका उपहास करते । वह कुछ न बोलता । कुछ दिनों बाद गाँव का एक व्यक्ति नककटे के बिछाए जाल में फंस गया । उसने उपहास किया तो वह बोला । " तुम सांसारिक लोग हमारी तपस्या को क्या जानोगे ।"
