पिता की स्मृति में लगाते हैं हर गुरुवार पौधा

त्रिपुरारी मिश्रा का मानना है कि "पेड़-पौधे हमारे जीवन का आधार हैं, और मेरे पिता प्रकृति के परम प्रेमी थे। पौधारोपण उनके प्रति मेरी श्रद्धा और धरती मां के प्रति मेरी जिम्मेदारी है।"

गोरखपुर

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4:54 PM, Aug 26, 2025

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पर्यावरण और मानव सेवा का जला रहे अलख

गोरखपुर। हरियाली को श्रद्धांजलि का रूप देना सबके बस की बात नहीं। लेकिन गोरखपुर जनपद के गोला तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत रामनगर डुमरी डेरवाँ निवासी त्रिपुरारी मिश्रा ने इसे अपने जीवन का मिशन बना लिया है। वे हर गुरुवार अपने स्वर्गीय पिता श्रीप्रकाश मिश्र की स्मृति में एक नया पौधा लगाते हैं। यह सिलसिला वर्ष दर वर्ष, सप्ताह दर सप्ताह निरंतर जारी है एक, भावनात्मक संकल्प के साथ।

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त्रिपुरारी मिश्रा का मानना है कि "पेड़-पौधे हमारे जीवन का आधार हैं, और मेरे पिता प्रकृति के परम प्रेमी थे। पौधारोपण उनके प्रति मेरी श्रद्धा और धरती मां के प्रति मेरी जिम्मेदारी है।"

हर अवसर को हरियाली से जोड़ने का प्रयास करते हैं। हर गुरुवार पौधारोपण के अलावा वे अपने इस संकल्प को सामाजिक अवसरों और सांस्कृतिक परंपराओं से भी जोड़ते हैं। वे महापुरुषों की जयंती, पूर्वजों की पुण्यतिथि, जन्मदिवस, विवाह एवं मांगलिक निमंत्रण पर पौधे भेंट कर पर्यावरणीय चेतना का संदेश देते हैं। उनका मानना है कि "हमें अपने जीवन के प्रत्येक उत्सव को हरियाली से जोड़ना चाहिए। यही सच्ची सेवा है पूर्वजों और समाज के प्रति।"

त्रिपुरारी मिश्र अब तक 63 गुरुवार पर फलदार और छायादार वृक्षों की अनेक प्रजातियाँ जैसे — आम, अमरूद, नीम, आंवला, पीपल, बरगद, पाकड़, गुलर, चितवन, गुलमोहर और समी आदि लगा चुके हैं। प्रत्येक पौधा उनके लिए केवल हरियाली नहीं, बल्कि श्रद्धा, स्मृति और सामाजिक संवाद का प्रतीक है। वे गाँव की बंजर ज़मीन, मंदिर परिसर, विद्यालय की दीवारों या सार्वजनिक स्थानों को हरित बनाने का प्रयास करते हैं। वे कहते हैं कि

"स्व. पिता जी की स्मृति में यह पौधा भी एक जीवन संदेश है।" यह साधारण-सा वाक्य असाधारण प्रभाव पैदा करता है, जो हर गुजरने वाले को रुक कर सोचने पर मजबूर कर देता है।

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पर्यावरणीय सेवा तक ही सीमित न रहकर, त्रिपुरारी मिश्र ने मानव सेवा को भी अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया है। वे भूखों को भोजन कराना, असहाय, वृद्ध, विधवा और निराश्रित दिव्यांगजनों की मदद करना अपने जीवन की प्राथमिकता मानते हैं। जब कहीं कोई ज़रूरतमंद दिखता है चाहे वो भोजन के लिए हो या दवा के लिए वे हर संभव मदद करने को तत्पर रहते हैं। उनका यह विचार अत्यंत स्पष्ट है कि "सेवा सिर्फ शब्द नहीं, एक व्यवहारिक जिम्मेदारी है। अगर आप किसी के लिए एक समय का भोजन जुटा सकें, तो यह भी एक तरह का यज्ञ है।"

आज गोरखपुर और आसपास के गाँवों में त्रिपुरारी मिश्र की इस पहल की चर्चा आम है। लोग उन्हें श्रद्धा से "पेड़ वाले मिश्रा जी" कहते हैं। विद्यालयों के छात्र-छात्राएँ भी उनके साथ पौधारोपण कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। बच्चों के बीच वे एक जीवंत आदर्श के रूप में स्थापित हो चुके हैं।

वे अक्सर कहते हैं —"हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि या जन्मदिवस पर कम से कम एक पौधा जरूर लगाए। यह केवल श्रद्धा नहीं, भविष्य की जिम्मेदारी है।"

वो पुराणों का हवाला देते हुए बताते हैं — "एक पेड़ दस पुत्र समाना।"

इसलिए वृक्षारोपण केवल पर्यावरणीय कार्य नहीं, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक कर्तव्य भी है।

जलवायु संकट, बढ़ता प्रदूषण और सामाजिक असमानता के इस दौर में जब अधिकतर लोग केवल चर्चा करते हैं, त्रिपुरारी मिश्र अपने काम से जवाब दे रहे हैं। बिना किसी मंच, माइक या प्रचार के वे हर गुरुवार धरती को एक नई साँस देते हैं और ज़रूरतमंदों के चेहरों पर मुस्कान।

उनका जीवन एक प्रेरणादायक उदाहरण है जिसमें हरियाली भी है और मानवता भी, श्रद्धा भी है और सेवा भी।

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