धन्वंतरि पूजा : आधुनिक भारत की स्वास्थ्य संस्कृति
भगवान धन्वंतरि की पूजा बहुत सहज और अर्थपूर्ण होती है। उनके चित्र या मूर्ति में वे अमृत कलश, शंख, चक्र और औषध धारण किए दिखते हैं। एक हाथ में जलूक या जड़ी-बूटी होती है, जो प्रकृति से प्राप्त चिकित्सा ज्ञान का प्रतीक है। उनके रूप में दिव्यता और वैज्ञानिकता दोनों झलकती हैं जैसे वे कह रहे हों कि प्रकृति ही सबसे बड़ी औषधशाला है।
लखनऊ

10:14 AM, Oct 18, 2025
फीचर डेस्क
जनपद न्यूज़ टाइम्स✍️ पवन शुक्ला (अधिवक्ता)
भारत में त्योहार केवल उत्सव नहीं होते वे जीवन के गहरे अर्थों की याद दिलाते हैं। धनतेरस भी ऐसा ही एक पर्व है, जो दिखने में तो धन और खरीदारी का उत्सव लगता है, लेकिन इसकी जड़ें स्वास्थ्य, संतुलन और आंतरिक समृद्धि में हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि धनतेरस असल में भगवान धन्वंतरि की जयंती है वे देवताओं के वैद्य, आयुर्वेद के जनक और जीवन-संरचना के प्रतीक माने जाते हैं।
शास्त्रों में जैसे वर्णन मिलता है, देवता और असुरों ने जब समुद्र मंथन किया, तब अमृत प्राप्ति की अभिलाषा में सागर का मंथन हुआ और उसी से भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए हाथ में अमृत कलश लिए, चार भुजाओं वाले, तेजस्वी और शांत स्वरूप में। वे विष्णु के ही एक रूप हैं, जिन्होंने संसार को यह संदेश दिया कि स्वास्थ्य ही धन है। इसी कारण इस दिन को धनतेरस यानी ‘धन’ (संपन्नता) और तेरस (त्रयोदशी) कहा गया।
अगर ध्यान से देखें, तो धनतेरस का ‘धन’ केवल सोने-चाँदी का नहीं, बल्कि जीवन की ऊर्जा और संतुलन का प्रतीक है। हमारे पूर्वजों ने इस दिन धन्वंतरि की आराधना इसलिए रखी ताकि लोग यह न भूलें कि समृद्धि का मूल शरीर की स्थिरता और मन की शांति में है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन का असली अमृत किसी पात्र में नहीं, हमारे जीवनशैली और दृष्टिकोण में छिपा है।
भगवान धन्वंतरि की पूजा बहुत सहज और अर्थपूर्ण होती है। उनके चित्र या मूर्ति में वे अमृत कलश, शंख, चक्र और औषध धारण किए दिखते हैं। एक हाथ में जलूक या जड़ी-बूटी होती है, जो प्रकृति से प्राप्त चिकित्सा ज्ञान का प्रतीक है। उनके रूप में दिव्यता और वैज्ञानिकता दोनों झलकती हैं जैसे वे कह रहे हों कि प्रकृति ही सबसे बड़ी औषधशाला है।
उनकी स्तुति में एक प्रसिद्ध श्लोक गाया जाता है:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतराये अमृतकलश हस्ताय सर्वमय विनाशनाय त्रैलोक्यनाथाय श्रीमहाविष्णवे नमः ॥
यह मंत्र केवल आराधना नहीं, बल्कि एक प्रार्थना है भीतर के रोगों, थकान और असंतुलन को मिटाने की। आधुनिक जीवन की दौड़ में जब हम समय, नींद और मन का संतुलन खो देते हैं, तब धन्वंतरि की उपासना हमें धीमा होना, सांस लेना और अपने भीतर की ध्वनि सुनना सिखाती है।
